Zihale-e-Miskeen Lyrics in Hindi – पूरा अर्थ समझें
परिचय – एक अमर शायरी का जादू
“ज़िहाले मस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल…” – ये लाइन सुनते ही एक अद्भुत सूफ़ी और रोमांटिक अहसास मन में जाग उठता है। इस शेर को हम में से कई लोगों ने गानों में, कव्वालियों में या सोशल मीडिया पर सुना होगा, लेकिन बहुत कम लोग इसके असली मायने और इतिहास को जानते हैं।
- परिचय – एक अमर शायरी का जादू
- ज़िहाले मस्कीं शेर के रचयिता कौन हैं?
- ज़िहाले मस्कीं के शेर का संपूर्ण पाठ (Lyrics in Hindi & Roman)
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- शब्दार्थ और लाइन दर लाइन अर्थ
- 1. ज़िहाले मस्कीं –
- 2. मकुन तगाफ़ुल –
- 3. दुराए नैना बनाए बतियां –
- 4. कि ताब-ए-हिज्रां न दारम ऐ जान –
- 5. न लेहो काहे लगाये छतियां –
- पूरा शेर का हिंदी में भावार्थ
- इस शेर में छिपा गहरा दर्द और प्रेम
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- ज़िहाले मस्कीं: गानों और फिल्मों में उपयोग
- 1. फिल्म – घूंघट (1960)
- 2. Coke Studio & Other Versions
- फ़ारसी और ब्रज भाषा का संयोग – एक सांस्कृतिक मेल
- शायरी और सूफ़ी प्रेम की शक्ति
- 🌟 Don't Miss These Posts
- आज के समय में इसकी प्रासंगिकता
- निष्कर्ष – एक अमर प्रेम कविता
यह शेर एक मिक्स लैंग्वेज में लिखा गया है – फ़ारसी और ब्रज भाषा की खूबसूरत बुनावट से तैयार किया गया एक अद्भुत नमूना। आइए इस लेख में हम इस कविता को विस्तार से समझें – इसके लिरिक्स, अर्थ, भाव और इससे जुड़े ऐतिहासिक संदर्भ को।
ज़िहाले मस्कीं शेर के रचयिता कौन हैं?
इस प्रसिद्ध शेर के लेखक हैं – अमीर खुसरो।
अमीर खुसरो 13वीं शताब्दी के एक महान सूफ़ी कवि, संगीतकार और विचारक थे, जिन्हें भारतीय उपमहाद्वीप में हिंदुस्तानी संगीत के जनक के रूप में भी जाना जाता है। वे ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया के परम शिष्य थे और उनका लिखा हुआ साहित्य आज भी दिलों को छूता है।
ज़िहाले मस्कीं के शेर का संपूर्ण पाठ (Lyrics in Hindi & Roman)
ज़िहाले मस्कीं मकुन तगाफ़ुल, दुराए नैना बनाए बतियां।
कि ताब-ए-हिज्रां न दारम ऐ जान, न लेहो काहे लगाये छतियां।।
Roman Urdu/Hindi Transliteration:
Zihale-e-miskin makun taghaful, duraaye naina banaye batiyan,
Ke taab-e-hijran nadaram ay jaan, na leho kahe lagaye chhatiyan.
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शब्दार्थ और लाइन दर लाइन अर्थ
यह शेर दो भाषाओं का मेल है – फ़ारसी और ब्रज।
इसे समझने के लिए हमें एक-एक शब्द का अर्थ समझना होगा।
1. ज़िहाले मस्कीं –
“ज़िहाल” = हालत या स्थिति,
“मस्कीं” = बेचारा, दुखी।
अर्थ: दुखी व्यक्ति की हालत को देखो।
2. मकुन तगाफ़ुल –
“मकुन” = मत कर,
“तगाफ़ुल” = अनदेखी या उपेक्षा।
अर्थ: उपेक्षा मत करो।
3. दुराए नैना बनाए बतियां –
“दुराए” = मोड़ना,
“नैना” = आँखें,
“बतियां” = बातें।
अर्थ: आँखें मोड़कर इशारे मत करो, और बनावटी बातें मत करो।
4. कि ताब-ए-हिज्रां न दारम ऐ जान –
“ताब” = सहनशक्ति,
“हिज्रां” = जुदाई,
“न दारम” = नहीं है,
“ऐ जान” = ऐ प्राण/प्रिय।
अर्थ: हे प्रिये! मेरे पास जुदाई सहने की ताक़त नहीं है।
5. न लेहो काहे लगाये छतियां –
“लेहो” = लो,
“काहे” = क्यों,
“लगाये छतियां” = छाती पीटना (दुख ज़ाहिर करना)।
अर्थ: अब और क्या करूं? कलेजा फाड़कर बैठा हूं, अब तुम ही बताओ क्यों रोऊं?
पूरा शेर का हिंदी में भावार्थ
“हे प्रिय, इस दुखी व्यक्ति की हालत पर कृपा करो और उपेक्षा मत करो।
अपनी आँखें मत फेरो और बनावटी बातें मत करो।
मेरे पास अब और जुदाई सहने की ताक़त नहीं बची है।
अब तुम ही बताओ कि मैं अपना दर्द कहां और कैसे रखूं?”
इस शेर में छिपा गहरा दर्द और प्रेम
इस शेर की सबसे खास बात है इसकी संवेदना और गहराई।
यह प्रेम और विरह का ऐसा उदाहरण है जहाँ प्रेमी अपने प्रिय से कहता है कि –
अब और जुदाई नहीं सह सकता, अब कृपया मेरी ओर देखो, बात करो।
यह कोई साधारण प्रेम नहीं, बल्कि एक आत्मा का दूसरे आत्मा से जुड़ाव है – एक सूफ़ी प्रेम।
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ज़िहाले मस्कीं: गानों और फिल्मों में उपयोग
इस शेर को कई बार हिंदी फिल्मों और म्यूज़िक एल्बम्स में दोहराया गया है, जिनमें कुछ प्रसिद्ध उदाहरण हैं:
1. फिल्म – घूंघट (1960)
गायक: लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी
संगीत: रवि
गीतकार: शकील बदायूनी
यह शेर इसमें बेहद मधुर संगीत के साथ पेश किया गया था, जिसमें विरह और मोहब्बत दोनों का अद्भुत संतुलन था।
2. Coke Studio & Other Versions
कई म्यूज़िकल बैंड और गायकों ने इस शेर को अपने अंदाज़ में पेश किया है – जैसे:
- Coke Studio Pakistan
- Sanam Band
- Abida Parveen द्वारा सूफ़ी अंदाज़ में
इन वर्ज़न्स में संगीत और शायरी का सुंदर मेल सुनने को मिलता है।
फ़ारसी और ब्रज भाषा का संयोग – एक सांस्कृतिक मेल
“ज़िहाले मस्कीं” शेर की खास बात यह है कि इसमें फ़ारसी और ब्रज – दो पूरी तरह अलग भाषाएं, बेहद खूबसूरती से साथ आती हैं।
- फ़ारसी: ज़िहाले, मस्कीं, मकुन, तगाफ़ुल, हिज्रां, ताब
- ब्रज/हिंदी: नैना, बतियां, काहे, छतियां
यह दर्शाता है कि अमीर खुसरो कितने बड़े भाषाई कलाकार थे। वे भाषा को भावनाओं से गूंथते थे।
शायरी और सूफ़ी प्रेम की शक्ति
सूफ़ी प्रेम किसी भी भौतिक प्रेम से ऊपर होता है। इसमें ईश्वर, गुरु या प्रेमिका सभी को “प्रेम” का प्रतीक माना जाता है।
यह शेर भी दो स्तरों पर काम करता है:
- मानव प्रेम के रूप में: जहाँ एक प्रेमी अपनी प्रेमिका से निवेदन कर रहा है।
- आध्यात्मिक प्रेम: जहाँ एक भक्त अपने ईश्वर से विरह में तड़प रहा है।
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आज के समय में इसकी प्रासंगिकता
आज के डिजिटल युग में जहाँ प्रेम में धैर्य और भावनाओं की गहराई कम हो गई है, ऐसे में “ज़िहाले मस्कीं” जैसा शेर हमें फिर से प्रेम की गहराई और जुड़ाव की सच्चाई याद दिलाता है।
यह हमें बताता है कि भावनाएं शब्दों से कहीं ज़्यादा ज़रूरी होती हैं।
निष्कर्ष – एक अमर प्रेम कविता
“ज़िहाले मस्कीं…” सिर्फ़ एक शेर नहीं, एक अनुभव है।
यह हमें बताता है कि भाषा की सीमाएं नहीं होतीं, जब बात दिल से दिल की हो।
अमीर खुसरो जैसे महान शायरों ने हमें जो साहित्य दिया है, वह आज भी हमारे हृदय को छूता है।
इस शेर को जितनी बार पढ़ो, हर बार एक नई गहराई और दर्द का एहसास होता है।










